Shri Ramayan Manka – Part 2

मेरा दोष बता प्रभु दीजो,
संग मुझे सेवा में लीजो |
अर्द्धांगिनी मैं तुम्हारी राम,
पतितपावन सीताराम | |25 | |

समाचार सुनि लक्ष्मण आये,
धनुष बाण संग परम सुहाये |
बोले संग चलूंगा राम,
पतितपावन सीताराम | |26 | |

राम लखन मिथिलेश कुमारी,
वन जाने की करी तैयारी |
रथ में बैठ गये सुख धाम,
पतितपावन सीताराम | |27 | |

अवधपुरी के सब नर नारी,
समाचार सुन व्याकुल भारी |
मचा अवध में कोहराम,
पतितपावन सीताराम | |28 | |

श्रृंगवेरपुर रघुवर आये,
रथ को अवधपुरी लौटाये |
गंगा तट पर आये राम,
पतितपावन सीताराम | |29 | |

केवट कहे चरण धुलवाओ,
पीछे नौका में चढ़ जाओ |
पत्थर कर दी नारी राम,
पतितपावन सीताराम | |30 | |

लाया एक कठौता पानी,
चरण कमल धोये सुखकारी |
नाव चढ़ाये लक्ष्मण राम,
पतितपावन सीताराम | |31 | |

उतराई में मुदरी दीनी,
केवट ने यह विनती कीनी |
उतराई नहीं लूंगा राम,
पतितपावन सीताराम | |32 | |

तुम आये हम घाट उतारे,
हम आयेंगे घाट तुम्हारे |
तब तुम पार लगायो राम,
पतितपावन सीताराम | |33 | |

भरद्वाज आश्रम पर आये,
राम लखन ने शीष नवाए |
एक रात कीन्हा विश्राम,
पतितपावन सीताराम | |34 | |

भाई भरत अयोध्या आये,
कैकई को कटु वचन सुनाये |
क्यों तुमने वन भेजे राम,
पतितपावन सीताराम | |35 | |

चित्रकूट रघुनंदन आये,
वन को देख सिया सुख पाये |
मिले भरत से भाई राम,
पतितपावन सीताराम | |36 | |

अवधपुरी को चलिए भाई,
यह सब कैकई की कुटिलाई |
तनिक दोष नहीं मेरा राम,
पतितपावन सीताराम | |37 | |

चरण पादुका तुम ले जाओ,
पूजा कर दर्शन फल पावो |
भरत को कंठ लगाये राम,
पतितपावन सीताराम | |38 | |

आगे चले राम रघुराया,
निशाचरों का वंश मिटाया |
ऋषियों के हुए पूरण काम,
पतितपावन सीताराम | |39 | |

अनसूईया की कुटीया आये,
दिव्य वस्त्र सिय मां ने पाय |
था मुनि अत्री का वह धाम,
पतितपावन सीताराम | |40 | |

मुनि-स्थान आए रघुराई,
शूर्पनखा की नाक कटाई |
खरदूषन को मारे राम,
पतितपावन सीताराम | |41 | |

पंचवटी रघुनंदन आए,
कनक मृग मारीच संग धाये |
लक्ष्मण तुम्हें बुलाते राम,
पतितपावन सीताराम | |42 | |

रावण साधु वेष में आया,
भूख ने मुझको बहुत सताया |
भिक्षा दो यह धर्म का काम,
पतितपावन सीताराम | |43 | |

भिक्षा लेकर सीता आई,
हाथ पकड़ रथ में बैठाई |
सूनी कुटिया देखी भाई,
पतितपावन सीताराम | |44 | |

धरनी गिरे राम रघुराई,
सीता के बिन व्याकुलता आई |
हे प्रिय सीते चीखे राम,
पतितपावन सीताराम | |45 | |

लक्ष्मण, सीता छोड़ नहीं तुम आते,
जनक दुलारी नहीं गंवाते |
बने बनाये बिगड़े काम,
पतितपावन सीताराम | |46 | |

कोमल बदन सुहासिनि सीते,
तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते |
लगे चाँदनी-जैसे घाम,
पतितपावन सीताराम | |47 | |

सुन री मैना, सुन रे तोता,
मैं भी पंखो वाला होता |
वन वन लेता ढूंढ तमाम,
पतितपावन सीताराम | |48 | |

श्यामा हिरनी, तू ही बता दे,
जनक नन्दनी मुझे मिला दे |
तेरे जैसी आँखे श्याम,
पतितपावन सीताराम | |49 | |

वन वन ढूंढ रहे रघुराई,
जनक दुलारी कहीं न पाई |
गृद्धराज ने किया प्रणाम,
पतितपावन सीताराम | |50 | |

to be continued…