चख चख कर फल शबरी लाई,
प्रेम सहित खाये रघुराई |
ऎसे मीठे नहीं हैं आम,
पतितपावन सीताराम | |51 | |
विप्र रुप धरि हनुमत आए,
चरण कमल में शीश नवाये |
कन्धे पर बैठाये राम,
पतितपावन सीताराम | |52 | |
सुग्रीव से करी मिताई,
अपनी सारी कथा सुनाई |
बाली पहुंचाया निज धाम,
पतितपावन सीताराम | |53 | |
सिंहासन सुग्रीव बिठाया,
मन में वह अति हर्षाया |
वर्षा ऋतु आई हे राम,
पतितपावन सीताराम | |54 | |
हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ,
वानरपति को यूं समझाओ |
सीता बिन व्याकुल हैं राम,
पतितपावन सीताराम | |55 | |
देश देश वानर भिजवाए,
सागर के सब तट पर आए |
सहते भूख प्यास और घाम,
पतितपावन सीताराम | |56 | |
सम्पाती ने पता बताया,
सीता को रावण ले आया |
सागर कूद गए हनुमान,
पतितपावन सीताराम | |57 | |
कोने कोने पता लगाया,
भगत विभीषण का घर पाया |
हनुमान को किया प्रणाम,
पतितपावन सीताराम | |58 | |
अशोक वाटिका हनुमत आए,
वृक्ष तले सीता को पाये |
आँसू बरसे आठो याम,
पतितपावन सीताराम | |59 | |
रावण संग निशिचरी लाके,
सीता को बोला समझा के |
मेरी ओर तुम देखो बाम,
पतितपावन सीताराम | |60 | |
मन्दोदरी बना दूँ दासी,
सब सेवा में लंका वासी |
करो भवन में चलकर विश्राम,
पतितपावन सीताराम | |61 | |
चाहे मस्तक कटे हमारा,
मैं नहीं देखूं बदन तुम्हारा |
मेरे तन मन धन है राम,
पतितपावन सीताराम | |62 | |
ऊपर से मुद्रिका गिराई,
सीता जी ने कंठ लगाई |
हनुमान ने किया प्रणाम,
पतितपावन सीताराम | |63 | |
मुझको भेजा है रघुराया,
सागर लांघ यहां मैं आया |
मैं हूं राम दास हनुमान,
पतितपावन सीताराम | |64 | |
भूख लगी फल खाना चाहूँ,
जो माता की आज्ञा पाऊँ |
सब के स्वामी हैं श्री राम,
पतितपावन सीताराम | |65 | |
सावधान हो कर फल खाना,
रखवालों को भूल ना जाना |
निशाचरों का है यह धाम,
पतितपावन सीताराम | |66 | |
हनुमान ने वृक्ष उखाड़े,
देख देख माली ललकारे |
मार-मार पहुंचाये धाम,
पतितपावन सीताराम | |67 | |
अक्षयकुमार को स्वर्ग पहुंचाया,
इन्द्रजीत को फांस ले आया |
ब्रह्मपाश से बंधे हनुमान,
पतितपावन सीताराम | |68 | |
सीता को तुम लौटा दीजो |
उन से क्षमा याचना कीजो |
तीन लोक के स्वामी राम,
पतितपावन सीताराम | |69 | |
भगत बिभीषण ने समझाया,
रावण ने उसको धमकाया |
सनमुख देख रहे रघुराई,
पतितपावन सीताराम | |70 | |
रूई तेल घृत वसन मंगाई,
पूंछ बांध कर आग लगाई |
पूंछ घुमाई है हनुमान,
पतितपावन सीताराम | |71 | |
सब लंका में आग लगाई,
सागर में जा पूंछ बुझाई |
ह्रदय कमल में राखे राम,
पतितपावन सीताराम | |72 | |
सागर कूद लौट कर आये,
समाचार रघुवर ने पाये |
दिव्य भक्ति का दिया इनाम,
पतितपावन सीताराम | |73 | |
वानर रीछ संग में लाए,
लक्ष्मण सहित सिंधु तट आए |
लगे सुखाने सागर राम,
पतितपावन सीताराम | |74 | |
सेतू कपि नल नील बनावें,
राम-राम लिख सिला तिरावें |
लंका पहुँचे राजा राम,
पतितपावन सीताराम | |75 | |
अंगद चल लंका में आया,
सभा बीच में पांव जमाया |
बाली पुत्र महा बलधाम,
पतितपावन सीताराम | |76 | |
रावण पाँव हटाने आया,
अंगद ने फिर पांव उठाया |
क्षमा करें तुझको श्री राम,
पतितपावन सीताराम | |77 | |
निशाचरों की सेना आई,
गरज तरज कर हुई लड़ाई |
वानर बोले जय सिया राम,
पतितपावन सीताराम | |78 | |
इन्द्रजीत ने शक्ति चलाई,
धरनी गिरे लखन मुरझाई |
चिन्ता करके रोये राम,
पतितपावन सीताराम | |79 | |
जब मैं अवधपुरी से आया,
हाय पिता ने प्राण गंवाया |
वन में गई चुराई बाम,
पतितपावन सीताराम | |80 | |
भाई तुमने भी छिटकाया,
जीवन में कुछ सुख नहीं पाया |
सेना में भारी कोहराम,
पतितपावन सीताराम | |81 |
जो संजीवनी बूटी को लाए,
तो भाई जीवित हो जाये |
बूटी लायेगा हनुमान,
पतितपावन सीताराम | |82 | |
जब बूटी का पता न पाया,
पर्वत ही लेकर के आया |
काल नेम पहुंचाया धाम,
पतितपावन सीताराम | |83 | |
भक्त भरत ने बाण चलाया,
चोट लगी हनुमत लंगड़ाया |
मुख से बोले जय सिया राम,
पतितपावन सीताराम | |84 | |
बोले भरत बहुत पछताकर,
पर्वत सहित बाण बैठाकर |
तुम्हें मिला दूं राजा राम,
पतितपावन सीताराम | |85 | |
बूटी लेकर हनुमत आया,
लखन लाल उठ शीष नवाया |
हनुमत कंठ लगाये राम,
पतितपावन सीताराम | |86 | |
कुंभकरन उठकर तब आया,
एक बाण से उसे गिराया |
इन्द्रजीत पहुँचाया धाम,
पतितपावन सीताराम | |87 | |
दुर्गापूजन रावण कीनो,
नौ दिन तक आहार न लीनो |
आसन बैठ किया है ध्यान,
पतितपावन सीताराम | |88 | |
रावण का व्रत खंडित कीना,
परम धाम पहुँचा ही दीना |
वानर बोले जय श्री राम,
पतितपावन सीताराम | |89 | |
सीता ने हरि दर्शन कीना,
चिन्ता शोक सभी तज दीना |
हँस कर बोले राजा राम,
पतितपावन सीताराम | |90 | |
पहले अग्नि परीक्षा पाओ,
पीछे निकट हमारे आओ |
तुम हो पतिव्रता हे बाम,
पतितपावन सीताराम | |91 | |
करी परीक्षा कंठ लगाई,
सब वानर सेना हरषाई |
राज्य बिभीषन दीन्हा राम,
पतितपावन सीताराम | |92 | |
फिर पुष्पक विमान मंगाया,
सीता सहित बैठे रघुराया |
दण्डकवन में उतरे राम,
पतितपावन सीताराम | |93 | |
ऋषिवर सुन दर्शन को आये,
स्तुति कर मन में हर्षाये |
तब गंगा तट आये राम,
पतितपावन सीताराम | |94 | |
नन्दी ग्राम पवनसुत आये,
भाई भरत को वचन सुनाए |
लंका से आए हैं राम,
पतितपावन सीताराम | |95 | |
कहो विप्र तुम कहां से आए,
ऐसे मीठे वचन सुनाए |
मुझे मिला दो भैया राम,
पतितपावन सीताराम | |96 | |
अवधपुरी रघुनन्दन आये,
मंदिर मंदिर मंगल छाये |
माताओं ने किया प्रणाम,
पतितपावन सीताराम | |97 | |
भाई भरत को गले लगाया,
सिंहासन बैठे रघुराया |
जग ने कहा हैं राजा राम,
पतितपावन सीताराम | |98 | |
सब भूमि विप्रो को दीनी,
विप्रों ने वापस दे दीनी |
हम तो भजन करेंगे राम,
पतितपावन सीताराम | |99 | |
धोबी ने धोबन धमकाई,
रामचन्द्र ने यह सुन पाई |
वन में सीता भेजी राम,
पतितपावन सीताराम | |100 | |
बाल्मीकि आश्रम में आई,
लव व कुश हुए दो भाई |
धीर वीर ज्ञानी बलवान,
पतितपावन सीताराम | |101 | |
अश्वमेघ यज्ञ किन्हा राम,
सीता बिन सब सूने काम |
लव कुश वहां दीयो पहचान,
पतितपावन सीताराम | |102 | |
सीता भूमि में समाई,
देखकर चिन्ता की रघुराई |
बार बार पछताये राम,
पतितपावन सीताराम | |104 | |
राम राज्य में सब सुख पावें,
प्रेम मग्न हो हरि गुन गावें |
दुख क्लेश का रहा ना नाम,
पतितपावन सीताराम | |105 | |
ग्यारह हजार वर्ष परयन्ता,
राज कीन्ह श्री लक्ष्मी कंता |
फिर बैकुण्ठ पधारे धाम,
पतितपावन सीताराम | |106 | |
अवधपुरी बैकुण्ठ सिधाई,
नर नारी सबने गति पाई |
शरनागत प्रतिपालक राम,
पतितपावन सीताराम | |107 | |
भक्तों ने लीला है गाई,
मेरी विनय सुनो रघुराई |
भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम,
पतितपावन सीताराम | |108 | |
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